भारतीय पुलिस की एक खासियत है। आतंकवादियों, अपराधियों, लुटेरों व भ्रष्टाचारियों के सामने उससे जिस प्रकार के सख्त बर्ताव की उम्मीद की जाती है वह मुश्किल से ही देखने को मिलता है। लेकिन गरीब, सीधे-सादे या कायदे की बात करने वालों के खिलाफ पुलिस अपना वो रूप दिखाने मे कोई कोताही नहीं बरतती है जो गुलाम भारत मे ब्रिटिश पुलिस भारतीयों के खिलाफ अख्तियार करती थी।
ऐसा ही एक शर्मनाक मामला शुक्रवार को मप्र के सागर जिले की बीना तहसील के रेलवे स्टेशन पर हुआ। जनता से जुड़े किसी मुद्दे पर सागर लोकसभा क्षेत्र के सांसद रेलवे अधिकारियों से चर्चा करने गए। ऐसी बातचीतों का तल्ख हो जाना सामान्य सी बात होती है। लेकिन यह बात रेलवे पुलिस को नागवार गुजरी। उनके अधिकारी से कोई तेज आवाज मे कैसे बात कर सकता है। बस उन्होने आव देखा न ताव और सांसद महोदय पर सरेआम बेरहमी से लाठियां बरसाना शुरू कर दिया। पुलिस के जवानों ने तब तक लाठियां बरसाईं जब तक सांसद बेहोश होकर जमीन पर नहीं गिर गए। सांसद गंभीर हालात मे भोपाल मे एक अस्पताल की गहन चिकित्सा ईकाई मे भर्ती हैं।
सवाल यह उठता है कि अगर सांसद व रेलवे अधिकारियों के बीच की बहस में कुछ ऐसे भी हुआ हो जिससे अधिकारियों का मन खट्टा हुआ हो तो भी उसकी प्रतिक्रिया वह नहीं हो सकती है जो पुलिस कार्यवाही के रूप मे सामने आई है। पुलिस के हथियार अपराधियों व देश के दुश्मनों का सामना करने के लिए होते हैं न की देश की जनता या जनप्रतिनिधियों को धुनने के लिए नहीं।
यह सब भारत मे ही हो सकता है। यहां आतंकवाद के आरोप मे गिरफ्तार लोगों को सरकार कानूनी मदद मुहैया कराने की सिफारिश करती है। लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन पर बम फेंकने वाले अफजल गुरू को न्याया की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा देने पर वह अपराधी की जगह सजा पर अमल को लटका देती है। लेकिन जनहित की बात करने पर सांसद की तेज आवाज भी उसे पसंद नहीं है। देश मे कानून के रखवालों का यह गुलाम भारत की आततायी ब्रिटिश सरकार व पुलिस के जैसा रवैया देश मे लोकतंत्र को तार-तार कर देगा। जिस देश मे जनता के प्रतिनिधियों व उनकी शीर्ष संस्था ही सुरक्षित न हो और वह भी उस देश की जनता के द्वारा चुनी गई सरकार की दोगली नीतियों की वजह से तो उस देश व वहां की जनता को तो भगवान ही बचा सकता है।
ऐसा ही एक शर्मनाक मामला शुक्रवार को मप्र के सागर जिले की बीना तहसील के रेलवे स्टेशन पर हुआ। जनता से जुड़े किसी मुद्दे पर सागर लोकसभा क्षेत्र के सांसद रेलवे अधिकारियों से चर्चा करने गए। ऐसी बातचीतों का तल्ख हो जाना सामान्य सी बात होती है। लेकिन यह बात रेलवे पुलिस को नागवार गुजरी। उनके अधिकारी से कोई तेज आवाज मे कैसे बात कर सकता है। बस उन्होने आव देखा न ताव और सांसद महोदय पर सरेआम बेरहमी से लाठियां बरसाना शुरू कर दिया। पुलिस के जवानों ने तब तक लाठियां बरसाईं जब तक सांसद बेहोश होकर जमीन पर नहीं गिर गए। सांसद गंभीर हालात मे भोपाल मे एक अस्पताल की गहन चिकित्सा ईकाई मे भर्ती हैं।
सवाल यह उठता है कि अगर सांसद व रेलवे अधिकारियों के बीच की बहस में कुछ ऐसे भी हुआ हो जिससे अधिकारियों का मन खट्टा हुआ हो तो भी उसकी प्रतिक्रिया वह नहीं हो सकती है जो पुलिस कार्यवाही के रूप मे सामने आई है। पुलिस के हथियार अपराधियों व देश के दुश्मनों का सामना करने के लिए होते हैं न की देश की जनता या जनप्रतिनिधियों को धुनने के लिए नहीं।
यह सब भारत मे ही हो सकता है। यहां आतंकवाद के आरोप मे गिरफ्तार लोगों को सरकार कानूनी मदद मुहैया कराने की सिफारिश करती है। लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन पर बम फेंकने वाले अफजल गुरू को न्याया की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा देने पर वह अपराधी की जगह सजा पर अमल को लटका देती है। लेकिन जनहित की बात करने पर सांसद की तेज आवाज भी उसे पसंद नहीं है। देश मे कानून के रखवालों का यह गुलाम भारत की आततायी ब्रिटिश सरकार व पुलिस के जैसा रवैया देश मे लोकतंत्र को तार-तार कर देगा। जिस देश मे जनता के प्रतिनिधियों व उनकी शीर्ष संस्था ही सुरक्षित न हो और वह भी उस देश की जनता के द्वारा चुनी गई सरकार की दोगली नीतियों की वजह से तो उस देश व वहां की जनता को तो भगवान ही बचा सकता है।
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