पंद्रहवी लोकसभा के लिए हो रहे चुनावों में बुंदेलखण्ड की सागर लोकसभा सीट पर राजनीति कुछ अजीब ही रंग दिखा रही है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच ही माना जा रहा है। लेकिन प्रचार-प्रसार के मोर्चे पर दोनों ही दल बेदम नजर आ रहे हैं।
अगर किसी चुनाव क्षेत्र में नजर आने वाले झण्डे, बैनर, पोस्टर व चुंगे-भोंपू को प्रचार-प्रसार की तेजी का पैमाना माना जाए तो कहा जा सकता है कि सागर संसदीय क्षेत्र मे प्रचार अभी रेंग ही रहा है। लेकिन बही-खातों, कागजों व पैकेज से चलने वाले संचार माध्यमों मे यह सरपट दौड ता नजर आ रहा है।
आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सागर लोकसभा सीट पर भाजपा का पलड़ा दो वजहों से भारी माना जा रहा है। एक तो हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे है। जिसमें इस संसदीय क्षेत्र की आठं मे से ६ सीटों पर भाजपा को जीत मिली जबकि कांग्रेस की झोली मे महज दो सीटें ही गईं। दूसरी वजह कांग्रेस हाईकमान द्वारा स्थानीय समीकरणों व टिकिट के दावेदारों को दरकिनार कर बाहरी प्रत्याशी माने जाने वाले असलम शेर खान को चुनाव मैदान मे उतारा जाना हैं। जिन्हें भाजपाई कमजोर प्रत्याशी बताते हुए कांग्रेस द्वारा वॉक-ओवर दिया जाना प्रचारित कर रहे हैं।
लेकिन कांग्रेसी खेमा इन दलीलों को नहीं मान रहा है। उसका कहना है कि भाजपा महज ऊपरी तौर पर ही मजबूत नजर आ रही है। शिवराज सिंह चौहान द्वारा स्थानीय दमदार प्रत्याशियों को किनारे लगाते हुए उनके चहेते माने जाने वाले लेकिन दो बार लगातार चुनाव हारे भूपेन्द्र सिह ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। इसके चलते पार्टी मे भितरघाती गुट सक्रिय हो गए है। जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलता नजर रहा है।
अगर राजनीतिक विशलेषकों की माने तो दोनों ही दल ही हवा मे हैं। कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों का स्थानीय नेतृत्व अपने अपने प्रत्याशियों को ऊपर से थोपा हुआ मान रहे हैं। दोनों ही पार्टियों मे ऐसे कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की कमी नहीं है जो खुद को सांप-छछूदर की स्थिति मे पा रहे हैं। उनका मन न तो घर बैठने मे लग रहा है न ही प्रचार करने में।
लेकिन इस सब के अलावा जो मजेदार बात सुनने मे आ रही है वह यह हैं कि सागर संसदीय क्षेत्र में भाजपा का असंतुष्ट गुट कांग्रेस के प्रत्याशी व कांग्रेस का असंतुष्ट गुट भाजपा प्रत्याशी की जीत के गुणगान में लगा हुआ है और उसे बड़ी शिद दत से प्रचारित भी कर रहा है।
यहां असंतुष्ट भाजपाई यह कहते हुए नहीं थक रहे हैं कि असलम को ज्यादा कुछ करने की जरुरत नहीं हैं। एक तो तेज गर्मी की वजह से सागर संसदीय क्षेत्र मे ५० फीसदी से कम यानी करीब ६ लाख ही वोट गिरने की उम्मीद है। दूसरे सागर संसदीय क्षेत्र मे करीब १२ लाख मतदाता हैं। इसमें से १० फीसदी मुसलमान व २० फीसदी पिछड ी जाति के मतदाता माने जा रहे है। चुंकि वोट डालने वालों में इनं वर्गों को काफी प्रतिबद्भ माना जाता है। इस लिहाज ंसे मुसलमानों के पूरे व पिछड े वर्ग के कम से कम आधे वोट कांग्रेस प्रत्याशी को मिलने की उम्मीद हैं। करीब ३ लाख वोटों का यह आंकड ा क्षेत्र मे गिरने वाले कुल सभावित वोटों का आधा बैठता है। इस संभावित वोट बैंक मे क्षेत्र के कम से कम ५० हजार प्रतिबद्भ कांग्रेसियों के वोट शामिल नहीं हैं जो कांग्रेस की जीत को और आसान बना देगें।
इस गुट का यह भी कहना है कि हारे हुए प्रत्याशी को टिकिट देने से पार्टी के कई दिग्गज नेता नाराज हो गए हैं। लगता हैं भाजपा प्रत्याशी को इस बात का अच्छी तरह से अहसास हो गया हैं। इस वजह से ही वह कांग्रेस से नेताओं को आयात कर असंतुष्ट कद़दावर नेताओं के विकल्प तैयार करने मे लगे है। इस बात से पार्टी मे जहां एक ओर समर्पित कार्यकता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। वहीं पार्टी के अंदर गुटबाजी भी तेज हो गई हैं। जो कुछ भी गुल खिला सकती है।
वहीं असंतुष्ट कांग्रेसी भाजपा प्रत्याशी के पक्ष मे गणित बैठा रहे हैं। उनके मुताबिक एक तो पिछले चार बार से लगातार जीत रही भाजपा का अपना एक बड ा प्रतिबद्भ वोट बैंक बन गया हैं। दूसरा भाजपा सरकार ने क्षेत्र मे कई विकास कार्य कराए हैं । तीसरे असलम शेरखान बाहरी प्रत्याशी हैं इन वजहों से मतदाताओं की बड ी संख्या मे पाला बदलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
दोनों ही पार्टी के असंतुष्ट गुटों का यह भी कहना है कि उनके प्रत्याशी कुछ अच्छा कर सकते भी थे लेकिन दुर्भाग्य से जिन लोगों की सलाह मानकर वो काम कर रहे हैं वह केवल चापलूसों की मण्डली है जिसका उनकी पार्टियों मे ही कोई वजूद नहीं है।
लेकिन इस आंकड ेबाजी मे कांग्रेस व भाजपा मे समर्पित भाव से काम कर रहें गुट भी कहीं पीछे नहीं लग रहा है। जहां भाजपा खेमे के ऐसे गुट का मानना है कि ''मरा हाथी भी सवा लाख'' का होता है। कितनी ही कम वोटिंग हो पार्टी के अंदर कितनी ही गुट बाजी हो अंततः जीत भाजपा की ही होनी है।
वहीं समर्पित कांग्रेसी खेमे का कहना है कि कई बार के हारे को प्रत्याशी बनाने से भाजपा की कमजोरी ही झलक रही है। भाजपा के अंदर भी यह सवाल उठाया जा रहा है कि प्रदेश मे दो बार सत्तारुढ हो चुकी पार्टी के पास सक्षम नेतृत्व की इतनी कमी आ गई हैं कि उसे हारे नेताओं पर दावं खेलना पड रहा है। कांग्रेस ने एक साफ स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को सागर का प्रत्याशी बनाया है। जो दुनिया भर मे देश का नाम रोशन कर चुका है। जनता अच्छे से जानती हैं कि ईमानदार नेतृत्व ही क्षेत्र का भला कर सकता है।
कांग्रेस व भाजपा के दावों-प्रतिदावों की जंग के बीच एक ऐसा भी धड़ा है जो सिर्फ यह सोच सोच कर परेशान है कि आखिर ऐसी क्या बात हैं कि कांगे्रस व भाजपा दोनों ही पार्टी के प्रत्याशी मतदाता से सीधी मुलाकात करने से कतरा रहे हैं। क्या ये आलाकमान का विश्वासपात्र होने मात्र को ही अपनी जीत की एकमात्र कसौटी मान रहे हैं? या इन्हें हार या जीत का मोह नहीं हैं? क्षेत्र मे न तो ''जय हो'' की आवाजें सुनाईं दे रहीं और नहीं ''भय हो'' की।
दोनों ही पार्टी के सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि चुनाव सर पर आ चुके है लेकिन संसदीय क्षेत्र के एक बड े क्षेत्र के मतदाताओं को अब तक अपने द्वारा पर न तो भाजपा के प्रत्याशी के दीदार करने का मौका मिला है और न ही कांग्रेस के प्रत्याशी के दीदार का।
आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सागर लोकसभा सीट पर भाजपा का पलड़ा दो वजहों से भारी माना जा रहा है। एक तो हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे है। जिसमें इस संसदीय क्षेत्र की आठं मे से ६ सीटों पर भाजपा को जीत मिली जबकि कांग्रेस की झोली मे महज दो सीटें ही गईं। दूसरी वजह कांग्रेस हाईकमान द्वारा स्थानीय समीकरणों व टिकिट के दावेदारों को दरकिनार कर बाहरी प्रत्याशी माने जाने वाले असलम शेर खान को चुनाव मैदान मे उतारा जाना हैं। जिन्हें भाजपाई कमजोर प्रत्याशी बताते हुए कांग्रेस द्वारा वॉक-ओवर दिया जाना प्रचारित कर रहे हैं।
लेकिन कांग्रेसी खेमा इन दलीलों को नहीं मान रहा है। उसका कहना है कि भाजपा महज ऊपरी तौर पर ही मजबूत नजर आ रही है। शिवराज सिंह चौहान द्वारा स्थानीय दमदार प्रत्याशियों को किनारे लगाते हुए उनके चहेते माने जाने वाले लेकिन दो बार लगातार चुनाव हारे भूपेन्द्र सिह ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। इसके चलते पार्टी मे भितरघाती गुट सक्रिय हो गए है। जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलता नजर रहा है।
अगर राजनीतिक विशलेषकों की माने तो दोनों ही दल ही हवा मे हैं। कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों का स्थानीय नेतृत्व अपने अपने प्रत्याशियों को ऊपर से थोपा हुआ मान रहे हैं। दोनों ही पार्टियों मे ऐसे कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की कमी नहीं है जो खुद को सांप-छछूदर की स्थिति मे पा रहे हैं। उनका मन न तो घर बैठने मे लग रहा है न ही प्रचार करने में।
लेकिन इस सब के अलावा जो मजेदार बात सुनने मे आ रही है वह यह हैं कि सागर संसदीय क्षेत्र में भाजपा का असंतुष्ट गुट कांग्रेस के प्रत्याशी व कांग्रेस का असंतुष्ट गुट भाजपा प्रत्याशी की जीत के गुणगान में लगा हुआ है और उसे बड़ी शिद दत से प्रचारित भी कर रहा है।
यहां असंतुष्ट भाजपाई यह कहते हुए नहीं थक रहे हैं कि असलम को ज्यादा कुछ करने की जरुरत नहीं हैं। एक तो तेज गर्मी की वजह से सागर संसदीय क्षेत्र मे ५० फीसदी से कम यानी करीब ६ लाख ही वोट गिरने की उम्मीद है। दूसरे सागर संसदीय क्षेत्र मे करीब १२ लाख मतदाता हैं। इसमें से १० फीसदी मुसलमान व २० फीसदी पिछड ी जाति के मतदाता माने जा रहे है। चुंकि वोट डालने वालों में इनं वर्गों को काफी प्रतिबद्भ माना जाता है। इस लिहाज ंसे मुसलमानों के पूरे व पिछड े वर्ग के कम से कम आधे वोट कांग्रेस प्रत्याशी को मिलने की उम्मीद हैं। करीब ३ लाख वोटों का यह आंकड ा क्षेत्र मे गिरने वाले कुल सभावित वोटों का आधा बैठता है। इस संभावित वोट बैंक मे क्षेत्र के कम से कम ५० हजार प्रतिबद्भ कांग्रेसियों के वोट शामिल नहीं हैं जो कांग्रेस की जीत को और आसान बना देगें।
इस गुट का यह भी कहना है कि हारे हुए प्रत्याशी को टिकिट देने से पार्टी के कई दिग्गज नेता नाराज हो गए हैं। लगता हैं भाजपा प्रत्याशी को इस बात का अच्छी तरह से अहसास हो गया हैं। इस वजह से ही वह कांग्रेस से नेताओं को आयात कर असंतुष्ट कद़दावर नेताओं के विकल्प तैयार करने मे लगे है। इस बात से पार्टी मे जहां एक ओर समर्पित कार्यकता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। वहीं पार्टी के अंदर गुटबाजी भी तेज हो गई हैं। जो कुछ भी गुल खिला सकती है।
वहीं असंतुष्ट कांग्रेसी भाजपा प्रत्याशी के पक्ष मे गणित बैठा रहे हैं। उनके मुताबिक एक तो पिछले चार बार से लगातार जीत रही भाजपा का अपना एक बड ा प्रतिबद्भ वोट बैंक बन गया हैं। दूसरा भाजपा सरकार ने क्षेत्र मे कई विकास कार्य कराए हैं । तीसरे असलम शेरखान बाहरी प्रत्याशी हैं इन वजहों से मतदाताओं की बड ी संख्या मे पाला बदलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
दोनों ही पार्टी के असंतुष्ट गुटों का यह भी कहना है कि उनके प्रत्याशी कुछ अच्छा कर सकते भी थे लेकिन दुर्भाग्य से जिन लोगों की सलाह मानकर वो काम कर रहे हैं वह केवल चापलूसों की मण्डली है जिसका उनकी पार्टियों मे ही कोई वजूद नहीं है।
लेकिन इस आंकड ेबाजी मे कांग्रेस व भाजपा मे समर्पित भाव से काम कर रहें गुट भी कहीं पीछे नहीं लग रहा है। जहां भाजपा खेमे के ऐसे गुट का मानना है कि ''मरा हाथी भी सवा लाख'' का होता है। कितनी ही कम वोटिंग हो पार्टी के अंदर कितनी ही गुट बाजी हो अंततः जीत भाजपा की ही होनी है।
वहीं समर्पित कांग्रेसी खेमे का कहना है कि कई बार के हारे को प्रत्याशी बनाने से भाजपा की कमजोरी ही झलक रही है। भाजपा के अंदर भी यह सवाल उठाया जा रहा है कि प्रदेश मे दो बार सत्तारुढ हो चुकी पार्टी के पास सक्षम नेतृत्व की इतनी कमी आ गई हैं कि उसे हारे नेताओं पर दावं खेलना पड रहा है। कांग्रेस ने एक साफ स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को सागर का प्रत्याशी बनाया है। जो दुनिया भर मे देश का नाम रोशन कर चुका है। जनता अच्छे से जानती हैं कि ईमानदार नेतृत्व ही क्षेत्र का भला कर सकता है।
कांग्रेस व भाजपा के दावों-प्रतिदावों की जंग के बीच एक ऐसा भी धड़ा है जो सिर्फ यह सोच सोच कर परेशान है कि आखिर ऐसी क्या बात हैं कि कांगे्रस व भाजपा दोनों ही पार्टी के प्रत्याशी मतदाता से सीधी मुलाकात करने से कतरा रहे हैं। क्या ये आलाकमान का विश्वासपात्र होने मात्र को ही अपनी जीत की एकमात्र कसौटी मान रहे हैं? या इन्हें हार या जीत का मोह नहीं हैं? क्षेत्र मे न तो ''जय हो'' की आवाजें सुनाईं दे रहीं और नहीं ''भय हो'' की।
दोनों ही पार्टी के सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि चुनाव सर पर आ चुके है लेकिन संसदीय क्षेत्र के एक बड े क्षेत्र के मतदाताओं को अब तक अपने द्वारा पर न तो भाजपा के प्रत्याशी के दीदार करने का मौका मिला है और न ही कांग्रेस के प्रत्याशी के दीदार का।
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