Monday, June 22, 2009

मानसून नही तो सब सून

मानसूनी हवाएं अब अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पर कुछ मेहरबान होती नजर आ रही हैं। सब कुछ ठीक रहा तो अगले दो दिनों में पश्चिमी तट पर मंुबई बौछारों से भीग सकती है। लेकिन अभी तक तो हालात नाजुक बने हुए हैं। मध्य भारत में मानसून की संभावनाएं अभी दिख नहीं रही हैं।
मौसम वैज्ञानिक आईला को मानसून के देर से आने का एक कारण बता रहे हैं। इनके मुताबिक आईला ने बंगाल की खाड़ी में मानसून की तेजी को कम कर दिया। देश में लगभग अस्सी प्रतिशत बारिश कराने वाला दक्षिण पश्चिम मानसून 20 जून से पहले बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा व गुजरात को सराबोर कर जाता था। पिछले साल इस समय तकदेश में 72.5 प्रतिशत बारिश हुई थी। इस बार 39.5 प्रतिशत हुई है।
मौसम वैज्ञानिकों की निगाह अरब सागर व बंगाल की खाड़ी में मौसम हलचल पर है। अगर वहां हवाओं ने तेजी न दिखाई तो मध्य भारत से बादल रूठ सकते हैं। मौसम विज्ञानी अभी तक अरब सागर के सिर्फ उस हिस्से में मानसूनी हवाएं देख रहे हैं जिसका फायदा देश के पश्चिमी भाग को मिलेगा। कुछ लाभ आन्ध्र प्रदेश को भी मिल सकता है। लेकिन मध्य भारत समेत दक्षिणी गुजरात के बड़े भाग के लिए इंतजार शायद लंबा हो सकता है।
23 मई के आसपास शुरू हुए दक्षिण पश्चिम मानसून को जहां 25 मई को आईला ने थोड़ा कमजोर किया वहीं जून में बंगाल की खाड़ी पर बना कम दबाव उत्तर पूर्व की ओर न बढ़कर बर्मा की तरफ बढ़ गया। इधर पश्चिमी तट पर वायुमंडलीय दबाव का अंतर कम हुआ। यह अंतर ज्यादा होने पर मानसूनी हवाएं तेज होती हैं।
आंकड़ों के अनुसार 36 में से 28 डिवीजनों में इस साल अब तक अनावृष्टि की स्थिति रही है। जबकि पिछले साल इस समय तक स्थिति पूरी तरह उल्टी थी। 28 डिवीजनों में सामान्य या सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी। वैसे भी खेती की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाले बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिस्से अब तक सराबोर हो जाते थे।
इस हिस्से में लगभग दस दिन की देरी हो चुकी है। आगे की संभावनाएं अभी दिखनी शुरू नहीं हुई है। उत्तर पश्चिमी हिस्सों में मानसून जून से दिखना शुरू हो जाता है।
फिलहाल इंतजार हो रहा है। प्रत्यक्ष तौर पर तो सरकार मानसून में देरी से चिंतित नहीं है। इस संबंध में गठित सचिवों की समिति ने शनिवार को एक बैठक के बाद ये तय किया है कि कृषि मंत्रालय उन राज्यों के सचिवों से बैठक करेगा जहां अभी तक मानसून नहीं पहुंचा है। हालांकि भीतरखाते मानसून की नरमी को लेकर सरकार चिंतित है। क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुधार का दारोमदार मानसून पर है।

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