Thursday, September 25, 2008

खेल खिलाएं पर खेल न करें..

अच्छी तालीम के बिना तरक्की की उम्मीद करना बेमानी लगता है। खेल-कूद को इससे अलग कर के नहीं देखा जा सकता है। इसीलिए सागर मे आयोजित हो रहीं 54 राज्य स्तरीय शालेय खेल प्रतियोगिता भी स्कूली शिक्षा मे बहूमुखी व गुणात्मक बनाए जाने के कोशिशें मे बाधक नहीं माना जा सकता है।
बच्चों को उनकी रूचि के मुताबिक ही खेलने व पढ़ने के अतिरिक्त अवसर देने में भी कोई बुराई नजर नहीं आती है। लेकिन खेलने वालों के खेल के बहाने पढ़ने वालों की पढ़ाई का हर्ज कराए जाने को किसी भी सूरत मे सही नहीं माना जा सकता है। जैसा की सागर मे हो रहा है।
यहां खेल प्रतियोगिताएं चलने की वजह से करीब चार स्कूलों मे अघोषित रूप से छ़ट्टी कर दी गई है। हालाकि छुट्टी कराए जाने की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाह रहा है। जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि हमने ऐसे कोई आदेश नहीं दिए हैं। वहीं स्कूलों के प्राचार्यों का कहना है कि हम तो छोटे अधिकारी हैं जिला अधिकारियों के मौखिक आदेश को भी मानने को मजबूर हें।
कौन सच्चा है और कौन झूठा यह तो अधिकारी हीं जानें लेकिन इस सच से खेलों के हिमायतियों को भी इंकार नहीं होगा कि खेल के नाम पर हजारों बच्चों को पढ़ाई से वंचित रखा जाना अच्छी बात नहीं है? इन हालातों मे विद्यार्थियों के अभिभावाकों की चुप्पी भी खलने वाली हैं। कम से कम उन्हें तो स्कूल प्रशासन के समक्ष अपना विरोध तो जताना चाहिए था। अगर शिक्षा विभाग के अधिकारी व बच्चों के अभिभावक अपनी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभांए तो वे बच्चों से किस मुंह से जिम्मेदार बनने के लिए कहेंगें?

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