Friday, September 26, 2008

कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है जरूरतमंदों तक..

केन्द्र व प्रदेश सरकार की ढेरों कल्याण योजनाएं चल रहीं हैं। इनसे बड़ी आबादी का फायदा भी हुआ है और हो रहा है। लेकिन अभी भी समाज का एक बहुत बढ़ा तबका ऐसा भी है जिसे इन योजनाओं की मदद की ज्यादा जरूरत है और उन तक ही इन योजनओं का फायदा अभी तक नहीं पहुंचा है। इस विषय और खेल, राजनीति व सेहत से जुड़ी खबरें आज अखबारों की सुर्खिर्यों छाईं रहीं।
दैनिक आचरण ने शहर के उपनगरीय क्षेत्र मे स्थित एकमात्र शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक शाला मे जगह की कमी के चलते एक ही कमरे मे एक साथ दो-दो कक्षाओं के लगने का मामला उठाया है। अखबार ने लिखा है कि अपर्याप्त जगह मे लग रहीं इन स्कूलों की दिक्कतें उस वक्त ज्यादा बढ़ गईं जब जिला प्रशासन ने स्कूल दो पाली की जगह एक ही पाली मे लगाए जाने का आदेश जारी किया।
नवदुनिया ने स्कूल परिसर, घर और गांव को साफ-सुथरा बनाने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा हर स्कूल के कुछ बच्चों को साफ-सफांई के बारे मे प्रशिक्षण देकर समाज मे जागृति फैलाने के लिए उन्हें स्वच्छता मित्र के रूप मे तैनात करने की योजना के बारे मे एक बड़ी खबर लगाई है। ' एक लाख मिस्टर क्लीन' शीर्षक से लगाई खबर मे अखबार ने लिखा है कि इन स्वच्छता मित्रों को उस एक लाख रूपए मे भी भागेदारी दी जाएगी जो उनके गांव को निर्मल ग्राम घोषित होने पर मिल सकती है। अखबार के माध्यम से जिला शिक्षा केन्द्र के कार्यक्रम समन्वयक रमाकांत तिवारी ने विद्यार्थियों के पालकों व अन्य लोगों से इस अभियान से जुड़कर बच्चों की मदद करने की अपेक्षा जताई है।
दैनिक भास्कर ने ' लापता हो गया रोजगार जनरेशन प्रोग्राम' शीर्षक से लगाई खबर मे केन्द्र सरकार द्वारा मार्च 08 मे बंद की गई प्रधानमंत्री रोजगार योजना के स्थान पर शुरू की जा रही प्रधानमंत्री रोजगार जनरेशन योजना के अब तक शुरू नहीं होने पर खबर लगाई हैं वहीं नवदुनिया ने इस योजना के 2 अक्टूबर गांधी जयंती से शुरू होने की खबर लगाई है।
दैनिक जागरण ने '22 मासूमों का आश्रयदाता कबीर बाल आश्रम' शीर्षक से लगाई अपनी पहली सुर्खी के जरिए खुलासा किया है कि केन्द्र व प्रदेश सरकार की कल्याण योजनाओं का फायदा आश्चर्यजनक रूप से शहर के कुछ किलोमीटर दूर एक गांव मे स्थित मासूमों को पाल रहे अनाथालय तक नहीं पहुंचा है। अखबर ने लिखा है कि इस आश्रम मे पल रहे 22 बच्चों मे से 16 बच्चे पांच वर्ष तक हैं उनमे से 4 तो अति कुपोषित अवस्था मे हैं। लेकिन महिला एवं बाल विकास द्वारा चलाए जा रहे बाल संजीवनी अभियान की नजर इन बच्चों पर न पड़ना उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। इस आश्रम के संचालक अपनी बेटी की मदद से बेहद तंगहाली मे इन मासूमों का पालन कर रहे हैं। अखबार ने आश्रम के सरकारी मदद से वंचित रहने पर अफसोस जताते हुए लिखा है कि अगर कल्याण योजनाओं का फायदा जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा हो तो इनकी सफलता का गुणगान ही संदेह के घेरे मे आ जाता है।

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