जनता को बेफकूफ बनाने मे भारत के नेताओं का दुनिया भर में कोई जोड़ नहीं हैं। लेकिन अपने चुनावी मंसूबों व स्वार्थों की पूर्ति मे उन्हें जनता की एक कमजोरी सबसे ज्यादा कारगर नजर आती है। जिसका वे जी भर कर उपयोग भी करते हैं। यह कमजोरी है जनता की कमजोर याददाश्त।
अब देखो ने चार साल पहले की ही बात है। सागर मे नगर निगम के चुनाव हुए। चुनाव मे महापौर के उम्मीदवारों ने जनता से कई लोक लुभावन वायदे किए। जनता का भरोसा जीतने में भाजपा के उम्मीदवार ने बाजी मार ली। उसके द्वारा किए गए वायदों मे से शहर मे निर्यात कर समाप्त करने का वायदा भी शामिल था। लेकिन कार्यकाल का तीन-चौथाई वक्त निकलने तक इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। जनता को भी कुछ याद नहीं रहा। लेकिन पता नहीं कैसे शहर के व्यापारियों को यह बात याद आ गई और उन्होने इस मुद्दे को एक बार फिर से उठा दिया। लेकिन नगर निगम ने एक चतुर खिलाड़ी की तरह मुद्दे को फुटबाल की तरह किक मारकर राज्य शासन की डी मे भेज दिया। शासन भी कोई कच्चा खिलाड़ी तो होता नहीं है। उसने भी बिना देर लगाए इस यह कहते हुए कि निर्यात कर को लगाने व हटाने मे निगम खुद ही सक्षम है । गेंद वापस नगर निगम की डी मे फेंक दी । अखबारों ने भी बड़ी बड़ी सुर्खियों मे इस बात को छापा। लेकिन कर फिर भी 'कर' नहीं हटा?
लेकिन जानकारों को इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्यों कि वे निगम की फितरत 'जान जाए पर दमड़ी न जाए' से अच्छे से वाकिफ थे। लाखों गंवाने की बात पर निगम ने जनता की कमजोर याददाश्त को ढाल बनाकर कुछ समय तक चुप्पी साधने मे ही भलाई समझी। हालंकि इस मुद्दे पर सागर की विधायक से भी उनकी काफी तू तू-मैं मैं हुई। लेकिन मामला वहीं ढाक के तीन पात बना रहा।
लेकिन करीब आते विधानसभा चुनावों मे जनता का दिल जीतने की कवायद मे भाजपा शासित निगम ने अनजाने में ही निर्यात कर हटाने का राग फिर छेड़ दिया है। लेकिन इस बार उसके सुर बदले हुए हैं। एक अखबार को दिए अपने बयान मे महापौर ने जनता को बताना चाहा है कि राज्य शासन की मंजूरी के बिना निगम निर्यात्ा कर हटा नहीं सकती है। निर्यात कर की समाप्ति से होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई तो वो दूसरें माध्यमों से कर ही लेगें।
यह बयान जारी करने से पहले उन्हें शायद या भरोसा हो गया होगा कि जनता कमजोर याददाश्त की वजह से यह जान नहीं पाएगी की निर्यात कर हटाने के मामले मे राज्य शासन पहले ही इसे निगम के अधिकार क्षेत्र का मुद्दा बताकर खुद को इससे अलग कर चुका है। निर्यात कर निगम के लालच की वजह से नहीं हट रहा है। निगम को जनहित के नाम पर लाखों रूपए की कमाई ठुकराना कतई गवारा नहीं है। प्रदेश मे सागर नगर निगम एकमात्र ऐसा स्थानीय निकाय है जो निर्यात कर वसूलता है।
लेकिन जानकारों को इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्यों कि वे निगम की फितरत 'जान जाए पर दमड़ी न जाए' से अच्छे से वाकिफ थे। लाखों गंवाने की बात पर निगम ने जनता की कमजोर याददाश्त को ढाल बनाकर कुछ समय तक चुप्पी साधने मे ही भलाई समझी। हालंकि इस मुद्दे पर सागर की विधायक से भी उनकी काफी तू तू-मैं मैं हुई। लेकिन मामला वहीं ढाक के तीन पात बना रहा।
लेकिन करीब आते विधानसभा चुनावों मे जनता का दिल जीतने की कवायद मे भाजपा शासित निगम ने अनजाने में ही निर्यात कर हटाने का राग फिर छेड़ दिया है। लेकिन इस बार उसके सुर बदले हुए हैं। एक अखबार को दिए अपने बयान मे महापौर ने जनता को बताना चाहा है कि राज्य शासन की मंजूरी के बिना निगम निर्यात्ा कर हटा नहीं सकती है। निर्यात कर की समाप्ति से होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई तो वो दूसरें माध्यमों से कर ही लेगें।
यह बयान जारी करने से पहले उन्हें शायद या भरोसा हो गया होगा कि जनता कमजोर याददाश्त की वजह से यह जान नहीं पाएगी की निर्यात कर हटाने के मामले मे राज्य शासन पहले ही इसे निगम के अधिकार क्षेत्र का मुद्दा बताकर खुद को इससे अलग कर चुका है। निर्यात कर निगम के लालच की वजह से नहीं हट रहा है। निगम को जनहित के नाम पर लाखों रूपए की कमाई ठुकराना कतई गवारा नहीं है। प्रदेश मे सागर नगर निगम एकमात्र ऐसा स्थानीय निकाय है जो निर्यात कर वसूलता है।
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