Tuesday, April 14, 2009

खजुराहो में सीधा मुकाबला हाथ व कमल के बीच

खजुराहो सीट बुंदेलखण्ड के उन क्षेत्रों मे गिनी जाती हैं जहां देश की आजादी के ६० साल बाद भी सामंतवाद का किला पूरी तरह से ढहा नहीं है। सामंतवाद की छ़त्रछाया मे जातिवाद की बेल खूब फलती-फूलती रही। तीसरी ताकत कहे जाने वाले दलों ने-सपा बसपा- जातीगत समीकरणों के सहारे ही इस क्षेत्र मे अपने पैर पसारने की शुरूआत की

कांग्रेस व भाजपा जैसी बडी पार्टियों को भी जातीगत समीकरणों मे ही तालमेल बैठाने के चक्क्र में इस सीट पर अपने उम्मीदवारों का नाम तय करने मे काफी मशक्कत करनी पडी । खजुराहो संसदीय क्षेत्र ब्राहा्रण व ठाकुर जाति बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। इसी गणित को ख्याल मे रखकर कांग्रेस ने ब्राहा्रण व भाजपा ने ठाकुर प्रत्याशी पर दांव खेला है।
भाजपा ने बिजावर विधानसभा के पूर्व विधायक जितेन्द्र सिंह बुंदेला को व कांग्र्रेस ने हटा के पूर्व विधायक राजा पटैरिया को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। दोनों ही पार्टी के प्रत्याशी राजनीति की जोड -तोड से अच्छी तरह वाकिफ है। सो मुकाबला के दमदार होने के आसार है। इस मुकाबले में कांग्रेस पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी जहां क्षेत्र के कद दावर नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के कंधे पर है वहीं भाजपा की ओर से रामकृष्ण कुसमरिया व शैलेन्द्र बरूआ मोर्चा संभाल रहे है।
हालांकि परिसीमन से खजुराहो के नक्शे में हुए बदलाव की वजह से राजनैतिक दलों को अपनी चुनावी रणनीति मे भी काफी फेरदबल करना पड रहा है। पिछले चुनावों तक यहां का मुकाबला बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी के बढ ते प्रभाव की वजह से त्रिकोणीय व चतुष्कोणीय होने की दिशा मे खिसकर रहा था। लेकिन मौजूदा हालात में कांग्रेस व भाजपा के बीच आमनेःसामने की टक्कर के हालात बन रहे है।
भाजपा व कांग्रेस द्वारा इस क्षेत्र में सपा व बसपा के किले में की गई लगातार सेंधमारी के चलते जहां कांग्रेस के विक्रम सिंह नातीराजा सपा से कांग्रेस मे आ गए तो वहीं सपा के ही विजय बहादुर सिंह बुंदेला व अशोक वीर विक्रम सिंह भाजपा मे आ गए। पिछले विधानसभा चुनावों मे कांग्रेस से टिकिट नहीं मिलने पर बसपा मे गए शंकर प्रताप सिंह मुन्ना राजा भी हाल ही मे भाजपा मे आ गए हैं। इसी जोड़ तोड के नतीजतन मौजूदा हालातों में खजुराहो संसदीय क्षेत्र के चुनावी संग्राम मे बसपा व सपा की चुनौती बेदम नजर आ रही है।
वर्तमान में खजुराहो संसदीय क्षेत्र मे आठ विधानसभा सीटें हैं। जिनमें छतरपुर जिले की दो- चंदला व राजनगर, पन्ना जिले की तीन पन्ना, गुन्नौर व पवई व कटनी जिले की तीन विजय राधवगढ , मुड वारा व बहोरीबंद विधानसभा सीटों को शामिल किया गया है।
परिसीमन के बाद खजुराहो संसदीय सीट मे शामिल विधानसभा सीटों पर हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजें भी खजुराहो सीट पर कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला होने के संकेत दे रहे हैं।
छतरपुर जिले की दोनों सीटों चंदला व राजनगर मे हाल ही मे हुए विधानसभा चुनावों में जहां चंदला सीट भाजपा ने जीती वहीं कांग्रेस चौथे स्थान पर रही। जबकि राजनगर सीट पर कांग्रेस पहले स्थान पर रही तो भाजपा को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड ा। इन दोनों ही सीटों पर भाजपा व कांग्रेस को मिले मतों की संख्या मे दोगुने का अंतर रहा। चंदला मे भाजपा को २०।६५ फीसदी वोट मिले तो कांग्रेसे को महज ११.०१ फीसदी ही मत मिले। इसी तरह राजनगर मे कांग्रेस को ३२.४८ तो भाजपा को१६.१६ फीसदी ही मत मिले।
पन्ना जिले की तीन सीटों मे से दो सीट -पवई व गुन्नौर भाजपा के खाते मे गई जबकि पन्ना सीट पर कांग्रेस की जीत हुई। लेकिन पन्ना सीट पर दोनों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली । इस सीट पर महज ४२ मतों के अंदर से फैसला हुआ। लेकिन गुन्नौर व पवई सीट पर कांग्रेस को तीसरा व चौथा स्थान मिला। इन सीटों पर उसे क्रमशः १७.८९ व ८.८३ फीसदी ही मत मिले।
जबकि कटनी जिले की तीन सीटों मे से बहोरीबंद, व विजयराधवगढ़ कांग्रेस व मुड वारा सीट भाजपा के खाते में गई। मुड वारा मे भाजपा को ४७.५० फीसदी मत मिले तो कांग्रेस को १९.८२ फीसदी ही मत मिले। वहीं विजय राधवगढ मे कांग्रेस के को ४४.०६ तो भाजपा को २५.१५ फीसदी ही मत मिले।
आंकड ों की भाषा से तो साफ हो रहा है कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र मे चार-चार सीटें हासिल करने वाली भाजपा व कांग्रेस के बीच बराबर की टक्कर है। इनता ही नहीं भारतीय जनशक्ति पार्टी द्वारा चुनाव नहीं लड ने की घोषणा व बहुजन समाज पार्टी व समाज वादी पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव के प्रति अबतक अख्तियार ढुलमुल रवैये की वजह से भी मुकाबला के द्भिपक्षीय ही रहने के हालात बन रहे है।
ऐतिहासिक नजरिए से भी इस सीट पर उलटफेर होते रहे हैं। आस्तित्व मे आने के बाद दो साल तक यह सीट कांग्रेस के कब्जे मे रही जबकि १९७७ मे भारतीय लोकदल के लक्ष्मीनारायण नायक यहां चुनाव जीते। इसके बाद १९८० व ८४ मे कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी की मां विद्यावती चतुर्वेदी इस सीट पर चुनाव जीतीें। लेकिन १९८९ से लेकर २००४ के पिछले चुनाव तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। सिर्फ मे बीच मे एक बार १९९९ सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कांग्रेस को यहां विजय दिला पाए। जबकि भाजपा की ओर से १९८९ से १९९८ तक चार बार उमा भारती व २००४ मे रामकृष्ण कुसमरिया ने जीत हासिल की।
पिछले चुनावों तक खजुराहो लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के लिए मिले वोटों का प्रतिशत ३० के आसपास ही खिसकता रहा है। सिर्फ १९८४ व १९९९ के चुनावों मे ही उसे ४० फीसदी से ज्यादा मत मिले। जबकि भाजपा को इस सीट पर वर्ष १९९९ को छोड कर कभी कभी ४० फीसदी से कम मत नहीं मिले।
बहरहाल चुनावी जंग का बिगुल तो बज चुका है सभी पार्टियों के योद्भा भी मैदान मे उतरने लगे हैं। अंतिम नतीजा जो भी रहे पर यह बात स्पष्ट हो चली है कि दोनों ही पार्टी के लड़ाकों को अपने हाशियों की ओर खिसकते राजनैतिक कैरियर मे नई जान फूंकने का मौका मिला है। देखना होगा कि इनमे से कौन अपनी पार्टी की आंतरिक गुटबाजी, असंतुष्टों के प्रपंचों व परिसीमन की वजह से उलझे जातीय समीकरणों के बीच तालमेल बैठाकर विजश्री हासिल कर पाता है।

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