Saturday, April 18, 2009

सागर लोकसभा सीट बनी हारे योद्धाओं की जंग का मैदान...

पंद्रहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनावों की सबसे खास बात यह मानी जा रही हैं कि इस बार परिसीमन की कांट-छांट दलबदल की होड़ ने पूरे देश के चुनावी समीकरणें को मथ कर रख दिया है। मप्र का बुंदेलखण्ड क्षेत्र भी इन प्रभावों से अछुता नहीं रहा है।

बुंदेलखण्ड क्षेत्र में सागर सीट पर तो परिसीमन व दलबदल के दौर के चलते जातिगत व राजनैतिक समीकरणों मे आ रहे बदलावों से निपटने के लिए कमोबेश सभी दल एक समान रणनीति पर काम करती नजर आ रहे हैं। इस बार राजनैतिक दलों -खासकर भाजपा व कांग्रेस -ने ऐसे उम्मीदवारों पर दांव खेला है जो लंबे समय से वोटरों को लुभाने मे फिसड्डी व नेताओं को लुभाने में अव्वल साबित होते आ आए हैं।
मप्र मे लगातार दूसरी बार सत्तारूढ हुई भाजपा सबसे पहले इस रणनीति पर अमल करती नजर आई। पार्टी ने सागर लोकसभा सीट पर ऐसी नेता को अपना प्रत्याशी घोषित किया हो जो पिछले दो विधानसभा चुनाव लगातार हार चुकें हैं। इसी राह पर चलते हुए कांग्रेस पार्टी ने भी पूर्व में दो बार १९८९ व १९९६ में बैतूल से लोकसभा चुनाव हार चुके हाकी के पूर्व ओलिम्पिक खिलाडी असलम शेरखान को सागर लोकसभा सीट का प्रत्याशी घोषित किया है।
लेकिन चुनावी जंग मे एक से ज्यादा बार पटखनी खा चुके प्रत्याशियों की कूटनीतिक यात्रा टिकिट हासिल करने के बाद भी थमीं नहीं है। अपनी पार्टी के नेताओं को रिझाकर टिकिट हासिल करने के बाद ये सियासत के खिलाड़ी अब अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रतिद्वंदी पार्टियों के कद दावर नेताओं को लुभाने मे लग गए है।
इस खेल मे भी भाजपा प्रत्याशी सबसे आगे भाग रहे हैं। बुंदेलखण्ड के सागर संसदीय क्षेत्र मे भाजपा की सेंधमारी से सबसे ज्यादा चोट कांग्रेस व बसपा को पडी है। अपनी जीत सुनिश्चित करने की कवायद मे भाजपा ने कांग्रेस व बसपा के असंतुष्ट नेताओं को अपने खेमें मे शामिल करने का एक अभियान सा छेड रखा है। अकेले सागर संसदीय क्षेत्र मे ही कांग्रेस पार्टी के कई कद दावर नेता भाजपा खेमे में जा चुके हैं।
इनमें सागर लोकसभा सीट पर टिकिट के प्रबल दावेदार माने जाने वाले दारु व्यवसायी संतोष साहू के अलावा खुरई क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष जिनेन्द्र गुरहा, विस चुनावों में टिकिट नहीं मिलने से नाराज हुए लक्ष्मी नारायण यादव, हाल ही में भाजपा को गले लगा चुकें है। पहले से ही अंतर्कलह, गुटबाजी व सत्ता विरह से कराह रही कांग्रेस पार्टी भाजपा की इस चोट से तिलमिलाई हुई लग रही है।
भाजपा की इस तोड -फोड की नीति से बसपा भी नहीं बच सकी है। जहां लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने के पहले ही खुरई विधानसभा क्षेत्रों से बसपा के टिकिट पर चुनाव लड चुके सौवीर जैन ने भाजपा का दामन थामा वहीं सागर लोकसभा सीट से बसपा के अधिकृत प्रत्याशी घोषित हो चुके शैलेष वर्मा ने नामांकन पत्र भरने के बाद भी बसपा को अलविदा कह कर भाजपा मे शामिल हो गए।
दलबदल के खेल के अलावा परिसीमन की वजह से भी सागर लोकसभा सीट पर भाजपा ही फायदे में नजर आ रही है। अगर हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों के नजरिए से देखें तो परिसीमन पूर्व के सागर जिले में चुनावी जीत का आंकड ा भाजपा व कांग्रेस के बीच ५-३ का था। वही परिसीमन के बाद ६-२ में बदल गया है।
परिसीमन के बाद सागर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से बण्डा, रहली व देवरी विधानसभा क्षेत्र दमोह लोकसभा क्षेत्र मे पहुंच गए हैं। इनमें से बण्डा सीट पर कांग्रेस व रहली व देवरी सीट पर भाजपा के खाते मे दर्ज है। जबकि विदिशा जिले के जो तीन विधानसभा क्षेत्र- शमशाबाद, कुरवई व सिरोंज सागर लोकसभा क्षेत्र शामिल हुए हैं भाजपा के ही खाते मे दर्ज हेै। हालांकि विस सीटों के इस अदल-बदल से सागर लोकसभा क्षेत्र में करीब ८३ हजार मतदाता कम हो गए है। जिससे सागर लोकसभा सीट बुंदेलखण्ड की सबसे कम मतदाता वाली सीट बन गई है। इस बात का भी लोकसभा चुनावों के नतीजों पर कुछ असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
लेकिन इस बार के लोकसभा चुनावों मे तीसरी ताकत के रुप में उभर रहे राजनैतिक दलों खासकर बहुजन समाज पार्टी व समाजवाद पार्टी के तेवरी के ढीले पड ने व भाजश के चुनावा परिदृश्य से पूरी तरह से गायब हो जाने से चुनावी मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच होता दिख रहा है।
लेकिन कांग्रेस पार्टी के ही सियासती धुरंधरों के मुताबिक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा टिकिट के स्थानीय दावेदारो को दरकिनार कर असलम शेरखान को सागर लोकसभा सीट का प्रत्याशी घोषित किए जाने से पार्टी के अंदर ही काफी खलबली मची हुई है। भाजपा ही नहीं कांग्रेस के खेमें में भी यह माना जा रहा है कि कांग्रेस ने असलम के बहाने भाजपा को वाक ओव्हर दे दिया है। इस सब के चलते ऐसा माना जा रहा है कि आमने सामने की लड ाई में भी कांग्रेस के योद्भा आधे मन से ही मोर्चा संभाल रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के एक खेमे का यह भी मानना है कि पार्टी द्वारा इस क्षेत्र से पहली बार किसी अल्पसंख्यक को टिकिट दिया एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। जिससे अच्छे नतीजे आने की उम्मीद है।

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