Sunday, May 31, 2009

प्यासे बुंदेलखंड में भी लहलहाएगी धान की फसल

भाषा/पीटीआई
दैनिक जागरण, जनसत्ता, पंजाब केसरी, याहू इंडिया,राज एक्स्प्रेस

सागर। सूखे से दरकती बुंदेलखंड की धरती के सीने पर हमेशा पानी में डूबी रहने वाली धान की फसल उगाने की बात शायद ही किसी के गले उतरती नजर आए, लेकिन क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्रों ने इस असंभव से लगने वाले काम को संभव करने का बीड़ा उठाया है।
अगर सब कुछ तय कार्यक्रम के मुताबिक हुआ तो कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले खरीफ के मौसम में ही बुंदेलखंड में चावल की फसल लहलहाती दिखेगी।
मध्यप्रदेश में जबलपुर में स्थित जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय पिछले पांच सालों से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी धान की फसल लेने की तकनीक पर काम कर रहा है।
सिस्टम आफ राइस इंटेंसीफिकेशन यानी धान सघनता पद्धति से मिले अच्छे शुरुआती नतीजों से उत्साहित होकर विश्वविद्यालय अब बुंदेलखंड में भी धान की फसल उगाने की योजना पर काम कर रहा है। विश्वविद्यालय का सागर के बम्होरी स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र आगामी खरीफ के मौसम में क्षेत्र के किसानों को जमीनी स्तर पर इस तकनीक से रूबरू कराने वाला है।
क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, बम्होरी के प्रभारी और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एम.पी. दुबे ने बताया कि जिस तकनीक के सहारे बुंदेलखंड में धान की खेती की पहल की जा रही है, वह दुनियाभर में मेडागास्कर धान उत्पादन विधि के नाम से जानी जाती है। कैरिबियन देश मेडागास्कर में 1983 में फादर हेनरी डी लाउलेनी ने इस तकनीक को ईजाद किया था। दुबे ने बताया कि इस तकनीक से धान की खेती में जहां भूमि,श्रम, पूंजी और पानी कम लगता है ्र वहीं उत्पादन 300 फीसदी तक ज्यादा मिलता है। बुंदेलखंड के किसानों को धान उत्पादन की इस नई तकनीक से जमीनी स्तर पर रूबरू कराने के लिए केन्द्र खुरई तहसील के बेरखेड़ी गांव में 4 से 5 एकड़ के खेत में आगामी खरीफ मौसम में धान उगाने जा रहा है।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है, लेकिन सिंचाई के पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर फसल की सिंचाई की जा सके। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर ही दोबारा सिंचाई करनी होती है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, बुंदेलखंड में पांचों जिलों में 40 से 60 इंच तक की सालाना औसत बारिश होती है ्र जो मेडागास्कर तकनीक के हिसाब से पर्याप्त मानी जा रही है। लेकिन बारिश के पानी का भलीभांति संग्रहण करने पर ज्यादा रकबे में धान की फसल ली जा सकती है।
संयुक्त संचालक किसान कल्याण और कृषि विकास सागर संभाग के मुताबिक फिलहाल संभाग में करीब 153 हजार हेक्टेयर रकबे में चावल की फसल बोई जाती है। इसमें सबसे ज्यादा क्षेत्र पन्ना जिले में 60 हजार हेक्टेयर और सागर जिले में सबसे कम 9 हजार हेक्टेयर का है। दमोह जिले में 56 हजार हेक्टेयर, टीकमगढ़ जिले में 18 हजार हेक्टेयर और छतरपुर जिले में 10 हजार हेक्टेयर रकबे में धान की खेती हो रही है। दुबे ने बताया कि धान उत्पादन की यह तकनीक बुंदेलखंड के किसानों के लिए किफायती साबित होगी। इस नई तकनीक से धान की खेती करने वालों को पारंपरिक ढंग से खेती करने वालों की तुलना में प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम की जगह मात्र 10-20 किलोग्राम ही बीज लगेगा, जबकि फसल उनसे 300 फीसदी तक ज्यादा मिल सकेगी।
उल्लेखनीय है कि पारंपरिक ढंग से की जाने वाली धान की खेती में प्रति हेक्टेयर उपज लेने की 50 से 55 क्विंटल की जो अधिकतम सीमा है वह मेडागास्कर तकनीक से प्रति हेक्टेयर फसल लेने की न्यूनतम सीमा के बराबर ठहरती है। बुंदेलखंड में धान की जवाहर 20 प्रजाति का बीज रोपण और खाद में एनपीके 100:60:40 के मिश्रण का प्रयोग ज्यादा कारगर साबित हो रहा है।
धान उत्पादन की इस नई तकनीक के बारे में बुंदेलखंड के किसानों में काफी उत्साह नजर आ रहा है। जिले के जैसीनगर विकासखंड के देवलचौरी गांव के उन्नत कृषक रितेश तिवारी का कहना है, यह तकनीक फायदेमंद लग रही है। क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में हम धान की खेती करने के लिए तैयार हैं।
खुरई तहसील के किसान बालमुकुन्द का कहना है कि 11 करोड़ रूपए की प्रस्तावित बीना परियोजना के पूरे हो जाने पर तो धान की खेती के लिए और भी अनुकूल हालात बन जाएंगे।

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